Sunday, May 9, 2010

आफ्टर ट्वेल्‍थ का क्राइसि‍स

ट्वेल्‍थ की एग्‍जाम खत्म होने के बाद अधिकतर स्टूडेंट्स के सामने यह दुविधा होती है कि आगे की पढ़ाई के लिए वे कौन सी स्ट्रीम चुनें। ग्रेजुएशन करें या फिर कोई प्रोफेशनल या वोकेशनल कोर्स? अगर ग्रेजुएशन करना है, तो इसके लिए कौन-सी स्ट्रीम चुनें? इस दुविधा का एक कारण यह भी है कि आजकल विकल्पों की भरमार है। इस समय स्टूडेंट ऐसे चौराहे पर खड़े होते हैं, जहाँ उन्हें एक खास रास्ते का चुनाव करना होता है। ऐसा रास्ता, जो उन्हें उनके करियर ग्राफ को एक नए मुकाम तक ले जाए।

बनाएँ बेलेंस
12वीं के बाद करियर ऑप्शन के संबंध में कोई भी निर्णय लेने से पहले दिल और दिमाग दोनों का संतुलन बिठाएँ। दिल जहाँ आपको यह बताएगा कि आपको क्या करने में खुशी मिलेगी, तो वहीं दिमाग बताएगा कि क्या अच्छा है और क्या नहीं? इन दोनों के संतुलन से आप उपयोगी और सक्षम बनाने वाले करियर की ओर बढ़ सकते हैं। इसके साथ-साथ आज के प्रतिस्पर्धी दौर को देखते हुए सिर्फ एक ही विकल्प पर निर्भर रहने के बजाय अपने लिए एक से अधिक करियर विकल्प भी जरूर तैयार करें। इससे एक रास्ता किसी कारण बंद होने की सूरत में दूसरा रास्ता खुला रहेगा।

लक्ष्य तय करें
आज के दौर में बिना लक्ष्य तय किए पढ़ाई करने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। आपकी रुचि जिस क्षेत्र में है, उसी को ध्यान में रखकर करियर की प्लानिंग करना बेहतर माना जा सकता है। आप 12वीं के बाद जिस क्षेत्र या विषय को चुन रहे हैं, उससे संबंधित समुचित योग्यता आपमें है या नहीं, इस चीज को पहले से ही परख लें!

कॉर्पोरेट वर्ल्ड में माँग
आज के जमाने के ऐसे कई ऑप्शंस हैं, जिनकी कॉर्पोरेट वर्ल्ड में हमेशा मांग बनी रहती है। इनमें बैचलर ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट (बीबीए), बैचलर ऑफ कम्प्यूटर एप्लिकेशंस (बीसीए), डिप्लोमा इन होटल मैनेजमेंट, डिप्लोमा इन होटल मैनेजमेंट ऐंड कैटरिंग टेक्नोलॉजी, बैचलर इन इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (बीआईटी), रिटेल मैनेजमेंट, बीएससी (कम्प्यूटर स्टडीज), डिप्लोमा इन एडवरटाइजिंग, प्रमोशन ऐंड सेल्स मैनेजमेंट, ट्रैवॅल ऐंड टूरिज्म, फैशन डिजाइनिंग, इवेंट मैनेजमेंट, पब्लिक रिलेशन कोर्स शामिल हैं।


NDविकल्पों की भरमार
पहले स्टूडेंट्स के पास मेडिकल, इंजीनियरिंग जैसे कुछेक करियर के ऑप्शन ही होते थे, लेकिन अब ऐसी बात नहीं है। आज इंजीनियरिंग, मेडिकल, लॉ, टीचिंग जैसे परंपरागत विषयों के साथ-साथ सैकड़ों नए विकल्प भी सामने आ गए हैं। ऐसे में एक या दो विषय में ही उच्च शिक्षा हासिल करने की मजबूरी नहीं रह गई है। बारहवीं के बाद ही तय करना होता है कि आप प्रोफेशनल कोर्स करना चाहते हैं या फिर एकेडमिक कोर्स।

इनका रखें ध्यान
कोर्स चुनने से पहले रुचि, योग्यता और उसमें उपलब्ध करियर विकल्पों पर जरूर विचार करें।

दूसरों की देखादेखी या पारंपरिक रूप से प्रचलित कोर्सों की बजाए अपनी रुचि के नए विकल्पों को आजमाने में संकोच न करें, क्योंकि अब इनमें भी आकर्षक करियर बनाया जा सकता है।

आर्ट्‌स में रुचि है, तो कदम आगे ब़ढ़ाने में बिल्कुल न झिझकें। इसमें भी विकल्पों की कमी नहीं है।

यदि निर्णय लेने में कोई दुविधा है, तो काउंसलर की सलाह अवश्य लें।

बारहवीं के बाद बिना किसी लक्ष्य के पढ़ाई न करें, बल्कि पहले दिशा तय कर लें और फिर उसके अनुरूप प्रयास करें।

कैसे मिटाएँ दूरियाँ...

कहते हैं कि प्यार की कोई सीमा नहीं होती पर मान लो अगर आपको अपने साथी से वर्षों तक दूर रहना पड़े। ऐसे समय के दौरान आप यह भी चाहते हैं कि आप दोनों के बीच का प्यार और आत्मीयता जीवित रहे...यहाँ पर आत्मीयता का अर्थ सिर्फ शारीरिक संबंध तक सीमित नहीं है, बल्कि एक ऐसा रिश्ता कायम करने में जिसमें आप एक-दूसरे के प्रति भावनात्मक तरीके से जुड़े रहते हैं... आखिर क्या करें इस प्रकार की परिस्थितियों में? क्योंकि हर किसी को कभी न कभी ऐसे हालातों का सामना करना ही पड़ता है।

ऐसे समय में ज्यादातर प्रेमी एक दूसरे को प्रेम पत्र लिखते हैं, कोई ईमेल भेजता है, कोई वॉइस चैट करता है, लेकिन यह सभी बातें तो सामान्य हैं, इससे हटकर भी कुछ ऐसा होना चाहिए जो आपकी दूरी को नजदीकी में तब्दील कर दे।

किसी भी रिश्ते को बरकरार रखने के लिए कम्युनिकेशन अर्थात वार्तालाप होना जरूरी है। खासकर ऐसे रिश्ते जिसमें आपका साथी आपसे बहुत दूर है। वार्तालाप ही आपको एक-दूसरे से जोड़कर रख सकता है। इसके जरिये आप दोनों पाएँगे कि चाहे दूरियाँ कितनी भी हों लेकिन आप हमेशा एक दूसरे के साथ ही है। कम्युनिकेशन के कई सारे माध्यम हैं जैसे कि मैंने ऊपर बताया इसके अलवा एक और माध्यम भी आ चुका है जो है वेब कैमरा, जिसकी मदद से आप अपने साथी को दूर बैठे हुए भी देख सकते हैं और बातें कर सकते हैं।

एक बात हमेशा ध्यान में रखें 'कभी भी अपने जीवनसाथी को अपने से दूर न होने दें। अगर एक बार भी आप दोनों के बीच कम्युनिकेशन खत्म हो गया तो समझो आपका प्यार किसी मझधार में फँस जाएगा। वहाँ पर विश्वास नाम की नौका कभी भी पहुँच नहीं पाएगी, क्योंकि जैसे ही कम्युनिकेशन बंद होता है, शंका-कुशंकाएँ जन्म लेना शुरू कर देती हैं। एक-दूसरे के प्रति जो भरोसा रहता है वह भी कम होने लगता है। यहाँ पर सवाल एक ही उठता है कि हम इन लंबी दूरियों को कैसे मिटाएँ जिससे हमारा प्यार हमेशा-हमेशा के लिए कायम रह सके।

खास दिनों को याद रखें
ऐसे मौकों पर आप दोनों को एक-दूसरे से जुडे हुए खास दिनों को याद रखना चाहिए, जैसे कि पिछले साल जब वेलेन्टाइन डे की यादों को ताजा कर लें। आप अगर किसी दोस्त की शादी में गए थे तो वहाँ पर कैसे मजे किए थे, आप एक-दूसरे का जन्मदिन भी याद रख सकते हैं।

रिकॉर्डेड सीडी भेजें
ऑफिस या परिवार में आयोजित प्रसंगों को रिकॉर्ड करके आप उन्हें भेज सकते हैं। मान लो कि दूर बैठे हुए आपके साथी का बर्थडे है, लेकिन उनके सभी दोस्त वही हैं जहाँ पर आप हैं, तो आप उनके सभी दोस्तों को साथ मिलाकर एक ऐसी सीडी रिकॉर्ड करें जिसमें उनका हर दोस्त बारी-बारी उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएँ दे रहा हो। ऐसा करने से आपका साथी कभी अपने आपको अकेला नहीं समझेगा। उसके मन से सभी दूरियाँ मिट जाएँगी। उसे लगेगा कि आप उसे कितना मिस करते हैं, उसकी कितनी परवाह करते हैं और उससे कितना प्यार करते हैं।

आजकल मोबाइल में भी रिकॉर्डेड वॉइस मैसेज की सुविधा प्रचलित है। आप कुछ न कर पाए तो रात को सोते समय अपने दूर बैठे साथी को वॉइस एसएमएस या टैक्स्ट एसएमएस जरूर भेजें। ऐसा करने से आपके साथी की पूरे दिन की थकान मिट जाएगी, वो उस वक्त आप को अपने करीब पाएगा। दावे के साथ कहता हूँ अगर दोनों का प्यार सच्चा होगा तो चाहे कितनी भी दूरियाँ क्यों न हों, आप दिल से एक दूसरे को करीब ही पाएँगे।

आपको भी है लव एडिक्शन?

'छोटी सी उमर में लग गया रोग, कहते हैं लोग कि मैं मर जाऊँगी' लता मंगेशकर के इस मशहूर गीत को आपने जरूर सुना होगा। यही इश्क का रोग है। प्रेम एक रोग है, इस बात को शायर सदियों से कहते चले आ रहे हैं, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने साबित किया है कि प्यार कोई रोग नहीं वास्तव में एक ऐसी नशीली दवा है, जिसकी लत पड़ जाती है।

वैज्ञानिकों ने इस संबंध में किए गए रिसर्च से साबित किया है कि जिस तरह से आपको सिगरेट और शराब पीने की लत पड़ जाती है, इसके बाद इंद्रियों पर काबू नहीं रहता और मना करने पर भी बार-बार इनकी तलब लगती है, ठीक उसी तरह प्यार की लत भी पड़ जाती है। शायद यही वजह है कि इश्क में तर्क से काम नहीं लिया जाता। दिल कहीं पर, किसी पर भी आ सकता है और फिर इस रोग का इलाज करना मुश्किल हो जाता है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक प्रेम रोग या इश्क की लत के लिए एक रसायन जिम्मेदार होता है। दिमाग के रसायनों पर की गई स्टडीज से यह मालूम हुआ है कि प्यार वास्तव में एक लत डालने वाली ड्रग है। जब लोग प्यार में पागल हो जाते हैं तो चंद घंटों की जुदाई से भी उन्हें परेशानी होने लगती है और उनमें विदड्रॉअल सिम्पटम्स स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं।

वैज्ञानिकों के नजरिए से प्यार में लत डालने वाला रसायन 'डोपामाइन' दिमाग के 'रिवार्ड सेंटर' को स्टिम्युलेट करता है और अच्छे अनुभवों को दोहराने की जो हमारी इच्छाएँ होती हैं, उसमें मुख्य भूमिका अदा करता है। जब हम शराब पीते हैं तो यह रसायन हमें प्रसन्नता का अहसास कराता है, सुरूर की बुलंदियों तक ले जाता है और बार-बार शराब पीने के लिए प्रेरित करता है।

ठीक यही प्रक्रिया प्यार या इश्क में भी दोहराई जाती है। इस संबंध में किया गया विस्तृत शोध अमेरिकी पत्रिका 'नेचरन्यूरो साइंस' में प्रकाशित हुआ है। फ्लोरिडा स्टेट विश्वविद्यालय के ब्रेंडन एरागोना के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने एक लड़का, जो प्यार में दीवाना था, के दिमाग में उस प्रोटीन को ब्लॉक कर दिया जो डोपामाइन से इंटरएक्ट करता है। इससे लड़के के प्रेम मैकेनिज्म (प्रक्रिया) में रोड़ा अटक गया।

प्रभावित नर, जो सामान्य स्थिति में अपनी मादा के साथ आक्रामक प्रतिक्रिया करता है, उसने अपनी मादा के लिए प्राथमिकता को ही खो दिया। यानी अगर किसी व्यक्ति के सिर से आशिकी का भूत उतारना है, तो उसके उस प्रोटीन को ब्लॉक कर दिया जाए जो डोपामाइन रसायन से इंटरएक्ट करता है, यानी उससे संबंध बनाता है। इससे शायद उसकी शराब की लत भी छूट जाए।

ए शॉर्ट स्टोरी अबाउट लव ए क्यूट लव स्टोरी

मैं हमेशा एक ऐसे आदर्श व्यक्ति की चाह रखती थी जो कुछ गंभीर तो कुछ बुद्धू सा हो, जिम्मेदार होने के साथ हाजिरजवाब हो और प्यार देने के मामले में भी बिल्कुल सच्चा हो। और बहुत से लोगों से मिलने के बाद मेरी आशाएँ और भी बढ़ गई थीं।

यहाँ गोआ में कितने खूबसूरत समुद्र तट हैं, चारों ओर सुंदरता मानो बिखरी हुई है। मनोहारी सूर्यास्त के दृश्य और गुजारा गया समय तो बहुत ही बेहतरीन है। अपने प्रियतम की बाहों में सिमटकर सूर्यास्त देखते हुए मुझे एक पल को अकेलापन महसूस नहीं हुआ। सुबह उसकी मुस्कान के साथ होती है तो दोपहर की गर्माहट को हम हाथों में हाथ डालकर घूमते हुए महसूस करते हैं।

उस पल को याद करती हूँ जब हम बस में सफर कर रहे थे और मैं बीच में फँसी बैठी थी। मेरे पड़ोस में कौन बैठा है इसका पता मुझे तब चला जब मेरी सहेली ने धूप से बचने के लिए खिड़की बंद की। वह मेरी ओर देखकर मुस्कराया, वैसे तो मैं अनजान लोगों की तरफ देखना भी पसंद नहीं करती लेकिन न जाने क्या बात थी उस निश्चल मुस्कान में कि मैं भी जवाब में मुस्करा दी।

फिर उसने हैलो कहा मैंने जवाब दिया। इसके बाद बातचीत में घंटों ऐसे बीत गए जैसे हम बरसों से एक दूसरे को जानते हों। थोड़ी देर बाद बस रुकी और वह घूमने के लिए नीचे उतरा। मेरी सहेली ने चुटकी ली 'अरे मैं भी साथ में हूँ मुझसे तो बात ही नहीं की आपने और लगीं है उसे अजनबी से बतियाने में।' सहेली की बात मुझे लग गई। जब वह वापिस आया तो जानबूझकर मैंने अपना मुँह एक किताब में गड़ा लिया। जब भी किताब से नजरें हटाकर देखती तो पाती कि वह मुझे ही देख रहा है।

बस से हम लोग साथ ही उतरे। उसे उसी शहर की किसी और कॉलोनी में जाना था। फोन नंबर और घर के पतों का आदान-प्रदान पहले ही हो चुका था। मुझे लग तो रहा था कि वह फोन जरूर करेगा। उसने फोन किया, फिर से बहुत सी बातें हुई और यह सिलसिला चल निकला।


NDमैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि यूँ ही सफर के दौरान इतने अच्छे व्यक्ति से मुलाकात हो जाएगी। अरे उसका नाम तो मैंने बताया ही नहीं? उसका नाम है अवनीश। अवनीश बेहद अच्छा इंसान है स्वार्थ तो उसके मन में रत्ती भर भी नहीं है। वह हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहता है। अपने लिए उसके पास समय नहीं है लेकिन दूसरों के लिए समय निकाल ही लेता है।

अभी जब हम गोआ में हैं तब भी वह अपने कंप्यूटर पर लगा है और मुसीबत में पड़े दोस्तों की मदद कर रहा है। कभी-कभी तो वह दूसरों के लिए रात भर भी जागता है लेकिन सुबह उठकर जब भी मेरे साथ बीच पर हाथों में हाथ लिए टहलता है तो मुझे लगता है कि सारे जहाँ की खुशियाँ सिमटकर मेरे हाथों में आ गई हैं। मुझे तो भरा पूरा परिवार मिला है पर उसने परिवार की खुशियाँ नहीं देखीं।

उसके पिता बहुत अच्छे थे लेकिन उसने उन्हें बहुत जल्दी खो दिया। माँ भी उसे प्यार नहीं दे पाई क्योंकि वे मानसिक रोग से पीड़ित हैं। वह माँ की सेवा भी करता है। उसने जीवन में बहुत कठिनाइयाँ देखीं हैं और अब मैंने उसे अपनी कोमल बाँहों का सहारा दिया है। आज हमारी सगाई हो चुकी है और हम सोचते हैं कि उस दिन बस में मुलाकात नहीं होती तो क्या होता? आज हम गोआ में हैं और एक दूसरे से बहुत खुश हैं। वह कुछ भी ज्यादा नहीं चाहता पर मैं उसे सब कुछ देना चाहती हूँ।

लड़कियाँ क्या चाहती हैं लड़कों से

प्यार करने वालों की हमेशा यह कोशिश होती है कि उनकी नजदीकियाँ बढ़ें। अंतरंगता बढ़ाने के लिए एक-दूसरे को प्रभावित करना बहुत ही जरूरी होता है। मॉडर्न माहौल और अत्याधुनिक बनने के चक्कर में वे कई बार ऐसी हरकतें कर बैठते हैं कि सामने वाला पास आने के बजाय और दूर हो जाता है।

हम चाहे जितना भी आधुनिक हो गए हों पर प्यार के मामले में तो पुराने और संभ्रांत तौर तरीके के ही आज भी दिल को अच्‍छे लगते हैं।

कॉमेंट्‍स करना, गाड़ियों पर जा रही लड़कियों को परेशान करना आदि काम छिछोरेपन की श्रेणी में आता है। जिनसे महिलाएँ बहुत बचना चाहती हैं। इनके जरिये आप उन लड़कियों की निगाह में इमेज बना नहीं रही उल्टा बिगाड़ रहे हैं। नफासत, शिष्टता और भद्रता का दामन थामे रहना, दिल के करीब पहुँचने का लव-मंत्र है।

दोस्तो, ज्यादातर फिल्मों, टीवी सीरियलों और पत्र-पत्रिकाओं में प्यार करने वालों की जो इमेज दिखाई जाती हैं, वह वास्तविक जिंदगी से मेल नहीं खाती हैं। अक्सर युवक-युवतियाँ इन माध्यमों से इम्प्रैस होकर वैसे व्यवहार को अपनी जिंदगी में उतारना चाहते हैं पर उसका असर उलटा पड़ता है। क्लोज आने के बजाय दोनों एक-दूसरे से दूर भागने लगते हैं।

कुछ युवकों की यह धारणा होती है कि युवतियों को तंग किया जाए तो वे करीब आती हैं पर यह सोच गलत है। महिलाएँ हमेशा शिष्टतापूर्ण व्यवहार से आकर्षित होती हैं। खिल्ली उड़ाने या अभद्र तौर तरीके से उन्हें कभी भी नजदीक नहीं लाया जा सकता है। बैठते समय उन्हें पहले बैठने का आग्रह करना, पानी का गिलास उनकी ओर बढ़ाना और खाने का ऑर्डर देते समय पहले उनकी पसंद पूछना आदि छोटी-छोटी बातें आपको महिलाओं के दिल में जगह बनाने में बहुत ही कारगर सिद्ध होंगी।


खाने की कोई अच्छी डिश आने पर आप उन्हें खिलाकर स्वाद भी पूछ सकते हैं। महिलाएँ कोमलता भरे लहजे और व्यवहार को पसंद करती हैं। महिलाओं की वेशभूषा और रूपरंग के विषय में भी बातें की जा सकती हैं। यदि आपके शब्दों और विचारों में अश्लीलता और फूहड़ता नहीं हो तो आप किसी भी विषय पर उनसे बातचीत कर सकते हैं और उनका दिल जीत सकते हैं।

पुरुष मित्रों को यह याद रखना चाहिए कि माहिलाओं के दिल में अपनी पक्की जगह बनाने के लिए उन्हें गंभीरता से लेने की जरूरत है। महिलाओं की बातों को ध्यान से सुनना, उनके विचारों को वेटेज देना, उन्हें अपना फैन बनाने का मंत्र है।

इस युग की महिलाएँ प्यार, भावना, संवेदना, व्यवहार यूँ कहें कि हर स्तर पर अपनी खास जगह तलाशती हैं। पुरुष सत्ता की धौंस दिखाने वाले सारे रवैये उन्हें आपसे दूर ही करते हैं। जिन पुरुषों को प्यार में गहरी दोस्ती का अहसास भी चाहिए, उन्हें महिलाओं के साथ खींचतान से बचना चाहिए। युवक यदि कोमलता से युवतियों से पेश आएँ तो उन्हें निश्चित ही पक्की दोस्ती की रसीद मिल सकती है।

सेक्स : मिथ एंड फैक्ट्स सेक्स : क्या कहते हैं रिसर्च

सेक्स के अच्छे और बुरे पक्ष को लेकर कई तरह के शोध हुए हैं। शोध कितने सही और गलत होते हैं यह हम नहीं जानते, लेकिन इनकी विश्वसनीयता पर संदेह किए जाने की जरूरत है, क्योंकि एक शोध कहता है कि नियमित सेक्स करने से व्यक्ति स्वस्थ बना रहता है और दूसरा शोध कहता है कि इससे हृदय कमजोर होता है। आयुर्वेद अनुसार तो नियमति सेक्स करना घातक माना गया है ऐसे में हम कौन से शोध की बात मानें। फिर भी आओ जानते हैं कि सेक्स पर किए गए शोधों का निष्कर्ष क्या है।

सुबह का सेक्स : ब्रिटेन के बेलफास्ट की क्वीन्स यूनिवर्सिटी में किए गए शोधानुसार सुबह-सुबह का सेक्स आपको तंदुरुस्त बनाता है। यह हार्ट अटैक, ब्लड प्रेशर, आर्थराइटिस और माइग्रेन को कंट्रोल करता है। लेकिन धर्मशास्त्र इसकी इजाजत नहीं देते क्योंकि ब्रह्ममुहूर्त सिर्फ ब्रह्म ध्यान के लिए होता है जबकि व्यक्ति में भरपूर ऊर्जा होती है। इस ऊर्जा का ध्यान-प्रार्थना के लिए उपयोग होना चाहिए। लेकिन शोधकर्ता मानते हैं कि सुबह के सेक्स से लगभग 300 कैलोरीज खर्च होती है जिसकी वजह से डायबिटीज का खतरा कम हो जाता है।

बेस्ट सेक्स की अवधि : सेक्स से जुड़ी भ्रांतियों और असुरक्षा की भावना से मुक्त होने के लिए सेक्स संबंधी ज्ञान का होना आवश्यक है। अमेरिका के पेन्सिलवेनिया स्थित बेहरेंड कॉलेज इन एरी के शोधकर्ताओं का मानना है कि कि आमतौर पर 3 मिनट का सेक्स पर्याप्त होता है और ज्यादा देर की बात करें तो 7 से 13 मिनट का समय सबसे अधिक डिजायरेबल होता है।

सेक्स का कारण : टैक्सास विश्वविद्यालय के शोधकर्ता मानते हैं कि सेक्स के लिए प्रेरित होने के लगभग 239 कारण हैं। युवक और युवतियों का एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होना एक कारण है। कॉलेज में शारीरिक सुख प्राप्त करने की तीव्र इच्छा जाग्रत होने का कारण यही है, इस इच्छा के चलते लिव इन रिलेशनशिप जैसे संबंध में पनपने लगे हैं। दूसरा यह कि प्रेम की अभिव्यक्ति और लगाव जाहिर करना शुरुआती 10 कारणों में से एक है। तो क्या हम यह मानें कि प्रेम के मूल में सेक्स ही है? शोधकर्ता मानते हैं कि किसी से बदला लेने के लिए भी सेक्स सबमें अजीब कारण है। स्त्रियाँ किसी स्त्री या पति से बदला लेने के लिए भी संभोग करती है।

34 के पार महिलाएँ : ब्रिटेन में हुए शोधानुसार 34 की उम्र में महिलाएँ स्वयं को ज्यादा सेक्स ऊर्जा से लबरेज महसूस करती हैं। यह भी माना जाता है कि 28 से 34 का समय सबसे महत्वपूर्ण होता है। 34 की उम्र में महिलाओं में कामसुख की प्रबल इच्छा होती है। ऐसा इसलिए होता है कि योनि में होने वाली पीड़ा अथवा गर्भधारण के भय से महिलाएँ मुक्त हो जाती हैं।

नियमित सेक्स से बढ़ती है प्रजनन क्षमता : ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों द्वारा 2007 में किए गए एक अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला है कि नियमित सेक्स से न केवल शुक्राणुओं की गुणवत्ता में सुधार होता है बल्कि उनकी प्रजनन क्षमता भी बढ़ती है। अध्ययन में कहा गया है कि ज्यादातर पुरुषों में शुक्राणु डीएनए को पहुँची क्षति नियमित सेक्स से दूर की जा सकती है।

आमतौर पर इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) से पहले पुरुष यह सोचकर ज्यादा सेक्स से बचते हैं कि ऐसा करने पर उनके शुक्राणु डीएनए में सामान्य से अधिक वृद्धि होगी। इस रिसर्च पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए ऑस्ट्रेलियाई सेक्स विशेषज्ञों ने कहा है कि ज्यादातर ऑस्ट्रेलियाई पुरुष, सेक्स के लिए लंबा अंतराल चाहते हैं, जबकि अधिकतर महिलाओं को इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह जल्दी खत्म होता है या देर में।

सेक्स और भारतीय : सेक्स की बात करने में भारतीय शर्मीले बेशक माने जाते हों, लेकिन अपने सेक्स जीवन को जिंदादिली से जीने में वे बिल्कुल भी पीछे नहीं हैं। सन 2007 में ड्यूरेक्स ग्लोबल सेक्सुअल वेलबींग द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में कहा गया है कि 61 प्रतिशत भारतीय अपने साथी के साथ यौन संबंधों से पूरी तरह संतुष्ट हैं जबकि नाइजीरियाई लोगों की संख्या 67 फीसदी और मैक्सिको के 63 प्रतिशत लोग सेक्स जीवन से संतुष्ट हैं। इस मामले में भारतीयों ने दुनियाभर में हुए शोध में तीसरे नंबर पर बाजी मारी है।

भारतीयों के लिए सेक्स अभी भी प्राथमिकताओं में बहुत नीचे है और भारतीय जोड़े सेक्स जैसे मुद्‍दों पर आपस में खुलकर बातचीत भी नहीं करते हैं। भारतीय पुरुषों के लिए सेक्स की प्राथमिकता का क्रम अगर 17वाँ है तो महिलाओं की सूची में भी इसे 14वाँ स्थान मिला है।

ज्यादातर पुरुष पारिवारिक जीवन, माँ-पिता की भूमिका, करियर, आर्थिक सम्पन्नता, शारीरिक तौर पर बेहतरी को प्राथमिकताओं में ऊँचा स्थान देते हैं। पुरुषों की तरह से महिलाएँ भी सेक्स की तुलना में अन्य जिम्मेदारियों को अहम मानती हैं। प्रसिद्ध दवा कंपनी फाइजर ग्लोबल फार्मास्यूटिकल्स ने भारत में एक सर्वेक्षण कराया और उसके नतीजों को सार्वजनिक किया। हालाँकि सर्वेक्षण के मुताबिक यौन संतुष्टि का शारीरिक स्वास्थ्य और प्यार व रोमांस से गहरा संबंध है, लेकिन भारत में इस पर खास ध्यान नहीं दिया जाता है।

सर्वेक्षण के लिए देशभर के चार सौ इलाकों को चुना गया था, जिनमें ज्यादातर शहरी क्षेत्र थे। इस कारण से सर्वेक्षण को शहरी कहा जा सकता है, लेकिन अगर देश के ग्रामीण इलाकों में भी ऐसा कोई सर्वेक्षण किया जाता है तो उसके नतीजे अधिक अलग नहीं होंगे।

मोटापा बना झंझट : ग्रेट ब्रिटेन में करीब 3000 लोगों पर किए गए सर्वे से पता चला कि 10 में से एक महिला मोटापे का शिकार थी। उन्होंने स्वीकार किया कि पिछले साल भर के दौरान सेक्स में कोई भूमिका नहीं निभाई और उनकी सेक्स लाइफ काफी रूखी थी। सर्वे के अनुसार, मोटी लड़कियाँ बेडरूम में उतनी कॉन्फिडेंट नहीं हो पातीं, जितनी दुबली-पतली लड़कियाँ होती हैं। इसका मुख्य कारण है कि मोटी लड़कियाँ अपने लुक को लेकर कॉन्फिडेंट नहीं रहतीं। वे हीनभावना से ग्रस्त रहती हैं।

कपड़ों का फायदा : शोधानुसार जो लड़कियाँ दिखने में छरहरी और छोटे-छोटे कपड़े पहनती थीं, वे सेक्सुअली काफी ऐक्टिव थीं। सर्वे में शामिल 60 प्रतिशत महिलाएँ, जिनकी साइज 8 थी, ने कुछ दिन पहले ही सेक्स का आनंद उठाया था। जबकि बड़ी साइज वाली महिलाएँ लंबे समय से सेक्स से दूर थीं। सर्वे में शामिल 50 फीसदी महिलाओं की साइज 12 थी और 33 फीसदी महिलाओं की 26 साइज थी।

प्‍यार के लि‍ए नि‍कालें दो पल

दुनिया में आज कहीं धर्म के नाम पर खून खराबा हो रहा है तो कहीं अमीर बनने के लिए लोग एक-दूसरे का कत्ल करने पर उतारू हैं। हिंसा आतंकवाद और बढ़ते चरमपंथ के बीच आज प्रेम दुनिया की सबसे बड़ी जरूरत बन गया है लेकिन फिर भी लोगों की नासमझी के चलते यह मिल नहीं पाता ।

एक मई को मनाया जाने वाला ‘ग्लोबल लव डे’ मनुष्य को यही संदेश देता है कि वह दूसरे मनुष्यों के साथ प्रेम से रहे और दुनिया की खुशहाली में अपना योगदान दे।

भारत में लोग ‘ग्लोबल लव डे’ के नाम से बेशक परिचित नहीं हैं लेकिन अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में यह दिन काफी धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर लोग एक-दूसरे के प्रति अपनी प्यार भरी भावनाएँ प्रदर्शित करने के लिए ग्रीटिंग कार्ड भी भेंट करते हैं जिसका अमेरिका जैसे देशों में बहुत बड़ा मार्केट है ।

समाजशास्त्री मानते हैं कि दुनिया का हर सामाजिक प्राणी कहीं न कहीं उलझा हुआ है। ऐसे में यदि वैश्विक प्रेम दिवस जैसे आयोजन उसे प्यार की बात सिखा दें तो इसमें कोई बुराई नहीं है।

लव फाउंडेशन से जुड़े डैनी ने इस अवसर के लिए लिखा है कि ‘ग्लोबल लव डे’ उसे बहुत सुकून देता है। आज जब लोगों के पास किसी से बात करने के लिए भी दो मिनट का समय नहीं बचा है तो ऐसे में इस तरह के दिवस आयोजन कुछ न कुछ अहसास कराते हैं। उनका कहना है कि आदमी दुनिया में आता है और फिर चला जाता है। ऐसे में यदि वह अपने साथ लोगों का प्यार लेकर जाए तो बात कुछ और हो जाती है। इंसानों को एक-दूसरे से घृणा नहीं करनी चाहिए और प्यार के महत्व को समझना चाहिए।

यदि समाज के लोगों में प्रेम की भावना उत्पन्न हो जाए तो दुनिया में व्याप्त सभी समस्याओं का हल खुद ब खुद निकल आएगा। इसलिए ‘ग्लोबल लव डे’ जैसे दिवस काफी मायने रखते हैं।

थोड़ा प्यार, थोड़ा काम

दोस्तो, कपल्स का साथ में घूमना-फिरना, रेस्टोरेंट में समय बिताना, लाँग ड्राइव पर जाना तक तो ठीक है। खूब मजे से एंजॉय कर लेते हैं लेकिन जब कंधों पर जरा सी भी जिम्मेदारी आती है तो अधिकतर मामलों में ये ऐसे ढेर हो जाते हैं जैसे बारिश में मिट्‍टी के पुतले बह जाते हैं।

गार्डन में बैठकर अपने प्यार के लिए जान देना या चाँद-तारे तोड़कर लाने के वादे करना तो बड़ा आसान है पर हकीकत में ये वादे उस वक्त चकनाचूर हो जाते हैं जब भविष्य में आने वाली मुश्किलों से आपका पाला पड़ता है।

तो जनाब अपनी जान को तो सँभालकर रखें अपनी जानेमन के लिए। क्योंकि यदि आपने इन समस्याओं के सामने जरा भी धैर्य खोया या साहस से काम नहीं लिया तो पूरे रोमांस का मजा किरकिरा हो सकता है।

यह बात तो सच है कि प्यार करने वालों का दिल एक-दूसरे का साथ पाने के लिए हमेशा तड़पता रहता है। अक्सर वे जीवन के अहम काम और लक्ष्य भूलकर साथ-साथ समय बिताने को तरजीह देते हैं।

शायद प्यार करने वाले यह बात भूल जाते हैं कि अन्य जिम्मे‍दारियों को अनदेखा कर केवल साथ समय गुजारने से प्यार बढ़ता नहीं बल्कि घटता है। जीवन में कुछ हासिल करते हुए आगे बढ़ने से प्यार की गाड़ी भी आगे बढ़ती है। अपनी महत्वाकांक्षा तथा लक्ष्य की पूर्ति और गंभीरतापूर्ण कदम उठाना भी जरूरी है जितना कि अपने साथी को पाने की चाहत।

प्यार में सब कुछ भुलाकर केवल एक-दूसरे का साथ पाना कोई समझदारी की बात नहीं है। इसमें कोई शक नहीं कि प्यार करने वाले अपनी सारी खुशी का केंद्र प्रेम की दुनिया में तलाशते हैं पर सफल प्रेम का राज आपकी अन्य गतिविधियों से जुड़ा हुआ है।

एक बात तो तय है कि जब हम अपनी अन्य मंजिल को गंभीरता से लेते हैं तो उस पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं। चाहे परीक्षा में अच्छे अंक लाना हो, प्रतियोगिता में कोई स्थान पाना हो या फिर अपने प्रोफेशन में तरक्की करनी हो, इन सबमें अच्छा मुकाम हासिल करने के लिए हमें जी-जान लगानी होती है।

मजे की बात यह है कि जब आप इस ओर ध्यान लगाते हैं तो आपके साथी को आपका उतना समय नहीं मिल पाता है जितना कि खाली रहते हुए आप उसे देते लेकिन ऐसा करने पर उसे आपसे शिकायत नहीं होती है बल्कि आपके प्रति उसके मन में सम्मान और प्यार बढ़ता है।

यदि आप अपनी मंजिल की ओर बढ़ते हैं तो खुद-ब-खुद आपका ‍आत्मविश्वास बढ़ जाता है। आत्मविश्वास से भरा हुआ व्यक्ति अपने मन को शांत रखता है और ठंडे दिल से फैसला लेता है। जब आपमें यह दम-खम होता है कि आप अपनी मंजिल तक पहुँच सकते हैं तो आप अपने साथी को हौसला व ताकत देते हैं। हम खुद जितने भी मायूस से रहें पर हमें हमेशा अपना साथी ऊर्जा से भरा हुआ ही अच्छा लगता है।

दोनों को ही अपनी-अपनी मंजिलों की ओर बढ़ना चाहिए। दोनों को ही सफलता पाने की कोशिश करनी चाहिए। किसी एक से ही ऊर्जा निचोड़ने से प्यार में मजबूती नहीं मिलती है। दोनों ही पूरी शक्ति से अपना काम करते हैं और फिर समय निकालकर प्यार भी करते हैं तो प्यार का मजा दोगुना हो जाता है।

बहुत से प्रेम करने वालों का यही रोना होता है कि उनका किसी और कार्य में मन ही नहीं लगता है। पर यकीन मानिए यदि उन्हें सब कुछ छोड़कर केवल साथ रहने को कह दिया जाए तो वह बहुत जल्दी ऊब जाएँगे। किसी भी व्यक्ति की और क्या शख्सियत है, इस बात का असर भी तो हमारे प्यार पर पड़ता है।

जो व्यक्ति अपने करियर को संजीदा ढंग से लेता है, वह अपने प्यार को भी गंभीरता से लेता है। करियर में आगे बढ़ते हुए यदि प्रेम का रिश्ता बढ़ता जाता है तो इसका मतलब है वह अपने रिश्ते को लेकर भी गंभीर है। केवल खाली समय काटने का बहाना नहीं है।

आजकल देखने में आता है कि दोनों की शादी में संबंध कहीं न कहीं से आड़े आ जाते हैं। इंटरकास्ट मैरिज हो या दोनों परिवारों का स्टेंडर्ड एक-सा ना हो तो अपना जीवनसाथी बनाने में काफी दिक्कतें आती हैं। ऐसी स्थिति में भी हर तरह से दोनों को ही अपने प्रयास से परिजनों को तैयार करना होता है। उन्हें यकीन दिलाने से लेकर शादी के बाद तक उन्हें इस ढंग से जीवन गुजारने के लिए तैयार होना होता है जिससे कहीं इन दोनों को नीचा न देखना पड़े।

दोनों को ही कुछ सार्थक करते हुए प्यार में साथ-साथ चलने की गुंजाइश निकालना बहुत ही प्यारा-सा लव मंत्र है। तो साथियों, खूब दिल लगाकर अपना काम कीजिए और अपने साथी के दिल पर राज कीजिए।

प्यार की नशीली दुनिया

'मोहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृत बूँद है, जो मरे हुए भावों को जिन्दा करती है। यह जिन्दगी की सबसे पाक, सबसे ऊँची, सबसे मुबारक बरकत है।' -मुंशी प्रेमचंद

मोहब्बत एक एहसास है, जिसे रूह से महसूस किया जा सकता है। यह उस अनादि अनंत ईश्वर की तरह है, जो सृष्टि के कण-कण में विद्यमान है। प्यार, जो हमारे संपूर्ण जीवन में विभिन्न रूपों में सामने आता है। जो यह एहसास दिलाता है कि जिन्दगी कितनी खूबसूरत है। डॉ. महावीरप्रसाद द्विवेदी ने 'प्रेम' की व्याख्या कुछ इस तरह की है कि - 'प्रेम से जीवन को अलौकिक सौंदर्य प्राप्त होता है। प्रेम से जीवन पवित्र और सार्थक हो जाता है। प्रेम जीवन की संपूर्णता है।' सृष्टि में जो कुछ सुकून भरा है, प्रेम है। प्रेम ही है, जो संबंधों को जीवित रखता है। परिवार के प्रति प्रेम, जिम्मेदारी सिखाता है।

प्रेम इंसान को विनम्र बना देता है। रूखे से रूखे और क्रूर से क्रूर इंसान के मन में यदि किसी के प्रति प्रेम की भावना जन्म ले लेती है, तो संपूर्ण प्राणी जगत के लिए वह विनम्र हो जाता है। ऐसे कई उदाहरण हमारे ग्रंथों में मिलते हैं। प्रेम चाहे व्यक्ति विशेष के प्रति हो या ईश्वर के प्रति। आश्चर्यजनक रूप से उसकी सोच, उसका व्यवहार, उसकी वाणी सबकुछ परिवर्तित हो जाता है।

प्यार, जिन्दगी का सबसे हसीन जज्बा है। बोलने में यह जितना मीठा है, उसका एहसास उतना ही खूबसूरत और प्यारा है। प्यार के एहसास को शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता। उसे व्यक्त करने की आवश्यकता भी नहीं होती। व्यक्ति की आँखें, चेहरा, हाव-भाव यहाँ तक कि उसकी साँसें दिल का सब भेद खोल देती हैं।

प्रेम की अनोखी दुनिया में खोकर कोई बाहर आना ही नहीं चाहता। वह जिसे प्यार करता है, खुली आँखों से भी उसी के सपने देखता है। उसके साथ बिताई घड़ियों को बार-बार याद करता है। उसके लिए सजना-सँवरना चाहता है। यही नहीं, औरों से बात करते हुए भी उसी का जिक्र चाहता है। यही प्यार का दीवानापन है और इस दीवानेपन में जो आनंद है, वह संसार की किसी भौतिकता में नहीं है।

आज की तेज रफ्तार से दौड़ती जिन्दगी में व्यक्ति जब एक-दूसरे को पीछे धकेलते हुए आगे बढ़ने की होड़ में संवेदनाओं को खोता चला जा रहा है, रिश्तों और एहसासों से दूर, संपन्नता में क्षणिक सुख खोजने के प्रयास में लगा रहता है, ऐसी स्थिति में जहाँ प्यार बैंक-बैलेंस और स्थायित्व देखकर किया जाता है, वहाँ सच्ची मोहब्बत, पहली नजर का प्यार और प्यार में पागलपन जैसी बातें बेमानी लगती हैं परंतु प्रेम शाश्वत है। प्रेम सोच-समझकर की जाने वाली चीज नहीं है। कोई कितना भी सोचे, यदि उसे सच्चा प्रेम हो गया तो उसके लिए दुनिया की हर चीज गौण हो जाती है। प्रेम की अनुभूति विलक्षण है। प्यार कब हो जाता है, पता ही नहीं चलता। इसका एहसास तो तब होता है, जब मन सदैव किसी का सामीप्य चाहने लगता है। उसकी मुस्कुराहट पर खिल उठता है। उसके दर्द से तड़पने लगता है। उस पर सर्वस्व समर्पित करना चाहता है, बिना किसी प्रतिदान की आशा के।

जयशंकर प्रसाद ने कहा है कि 'प्रेम चतुर मनुष्यों के लिए नहीं है। वह तो शिशु-से सरल हृदय की वस्तु है।' सच्चा प्रेम प्रतिदान नहीं चाहता, बल्कि उसकी खुशियों के लिए बलिदान करता है। प्रिय की निष्ठुरता भी उसे कम नहीं कर सकती। वास्तव में प्रेम के पथ में प्रेमी और प्रिय दो नहीं, एक हुआ करते हैं। एक की खुशी दूसरे की आँखों में छलकती है और किसी के दुःख से किसी की आँख भर आती है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल कहते हैं कि 'प्रेम एक संजीवनी शक्ति है। संसार के हर दुर्लभ कार्य को करने के लिए यह प्यार संबल प्रदान करता है। आत्मविश्वास बढ़ाता है। यह असीम होता है। इसका केंद्र तो होता है लेकिन परिधि नहीं होती।' प्रेम एक तपस्या है, जिसमें मिलने की खुशी, बिछड़ने का दुःख, प्रेम का उन्माद, विरह का ताप सबकुछ सहना होता है। प्रेम की पराकाष्ठा का एहसास तो तब होता है, जब वह किसी से दूर हो जाता है।

खलील जिब्रान के अनुसार- 'प्रेम अपनी गहराई को वियोग की घड़ियाँ आ पहुँचने तक स्वयं नहीं जानता।' प्रेम विरह की पीड़ा को वही अनुभव कर सकता है, जिसने इसे भोगा है। इस पीड़ा का एहसास भी सुखद होता है। दूरी का दर्द मीठा होता है। वो कसक उठती है मन में कि बयान नहीं किया जा सकता। दूरी प्रेम को बढ़ाती है और पुनर्मिलन का वह सुख देती है, जो अद्वितीय होता है। प्यार के इस भाव को इस रूप को केवल महसूस किया जा सकता है। इसकी अभिव्यक्ति कर पाना संभव नहीं है। बिछोह का दुःख मिलने न मिलने की आशा-आशंका में जो समय व्यतीत होता है, वह जीवन का अमूल्य अंश होता है। उस तड़प का अपना एक आनंद है।

प्यार और दर्द में गहरा रिश्ता है। जिस दिल में दर्द ना हो, वहाँ प्यार का एहसास भी नहीं होता। किसी के दूर जाने पर जो खालीपन लगता है, जो टीस दिल में उठती है, वही तो प्यार का दर्द है। इसी दर्द के कारण प्रेमी हृदय कितनी ही कृतियों की रचना करता है।

प्रेम को लेकर जो साहित्य रचा गया है, उसमें देखा जा सकता है कि जहाँ विरह का उल्लेख होता है, वह साहित्य मन को छू लेता है। उसकी भाषा स्वतः ही मीठी हो जाती है, काव्यात्मक हो जाती है। मर्मस्पर्शी होकर सीधे दिल पर लगती है।

प्रेम में नकारात्मक सोच के लिए कोई जगह नहीं होती। जो लोग प्यार में असफल होकर अपने प्रिय को नुकसान पहुँचाने का कार्य करते हैं, वे सच्चा प्यार नहीं करते। प्रेम सकारण भी नहीं होता। प्रेम तो हो जाने वाली चीज है। किसी के खयालों में खोकर खुद को भुला देना, उसके सभी दर्द अपना लेना, स्वयं को समर्पित कर देना, उसकी जुदाई में दिल में एक मीठी चुभन महसूस करना, हर पल उसका सामीप्य चाहना, उसकी खुशियों में खुश होना, उसके आँसुओं को अपनी आँखों में ले लेना, हाँ यही तो प्यार है। इसे महसूस करो और खो जाओ उस सुनहरी अनोखी दुनिया में, जहाँ सिर्फ सुकून है।

प्यार किया नहीं जाता...

प्यार क्या होता है, इस सवाल का जवाब मुझे नहीं मालूम था। स्कूल में सहेलियों की स्लैम बुक भरते समय अक्सर यह कॉलम खाली छोड़ दिया करती थी कि प्यार क्या होता है? काश, किसी किताब में प्यार की परिभाषा दी होती, तो मैं उसे रटकर याद कर लेती। फिर बड़ी आसानी से बताती कि प्यार क्या होता है। वैसे जब छोटी थी तो लगता था कि सोलह साल की उम्र में प्यार होता है। मैं भी सोलह साल की हुई पर मुझे तो नहीं हुआ।

जब सोलह साल की हुई तो बर्थ-डे विश करते समय कुछ लोगों ने कहा कि अहा, अब तो स्वीट सिक्‍स्‍टीन में आ गई हो। मुझे भी लगा कि स्‍वीट सिक्‍स्‍टीन यानी अब हमेशा से कुछ अलग होगा। ये क्‍या, अब भी कुछ अलग नहीं हुआ। सबकुछ वैसा ही चलता रहा जैसा था।

मस्ती तो हम क्लास में पहले भी करते थे। सोलह साल के होने के बाद भी करते रहे। बारहवीं की पढ़ाई करते-करते सोलहवाँ साल आधा बीत गया। सोलहवें साल में मैं स्कूल पास कर कॉलेज पहुँच गई। फिल्मों में देखा था कि कॉलेज में जाकर लड़कियों को प्यार हो जाता है। मुझे तो नहीं हुआ।

वैसे हमारी क्लास में प्‍यार करने वाले बहुत थे। सब उन्हें लव-बर्ड्स कहकर चिढ़ाया करते थे। यह सब देखने के बाद मैंने फैसला किया कि मैं कभी प्यार नहीं करूँगी और किया भी नहीं। सच कहूँ तो हुआ ही नहीं। फिर कभी प्यार के बारे में सोचा भी नहीं। कॉलेज खत्म होने तक स्लैम बुक के लव कॉलम भरने के लिए मेरे पास शानदार शब्द थे। लव मतलब बकवास, प्‍यार का मतलब होता है, टाइम वेस्‍ट।

समय बीतता गया और लव की फैन्टेसी दूर जाती रही। एक दिन ऑफिस में सीनियर ने विषय दे दिया कि प्‍यार पर लेख लिखो। जिसके लिए प्‍यार शब्द बकवास था, वो भला क्या लिखती? पर फिर भी काम टाला नहीं जा सकता था, इसलिए प्यार के बारे में सोचना शुरू किया।

याद आया कि एक कपल के इंटरव्यू के दौरान देखा था कि साठ वर्ष की उम्र वाले सज्‍जन कैंसर से लड़कर ठीक होने वाली अपनी पचपन साल की पत्नी को जीने का रास्ता दिखा रहे थे। वे अपनी पत्नी से बार-बार यही कहते कि तुम ठीक हो जाओ, फिर मुझे अपना एक वादा पूरा करना है। कौन-सा वादा बाकी है आपका? उनकी पत्‍नी ने पूछा, अरे भई तुम्हें योरप घुमाना है।

अब मुझे नहीं घूमना।

क्यों नहीं घूमना? मुझे पता है तुम्हें घूमना है, लेकिन तुम इस बीमारी से डर रही हो। इस बीमारी में इतनी ताकत नहीं है कि तुम्हें घूमने न दे।

जो लाड़ उस व्यक्ति की बातों में था, शायद उसे ही प्यार कहते हैं। याद आया, ऐसा प्यार तो मैंने सब्जी मंडी में भी देखा था।

सब्जी मंडी में एक डॉक्टर साहब अक्‍सर मिल जाते हैं। वो शहर के नामी डॉक्टर हैं। घर पर नौकर-चाकर जरूर होंगे। फिर हर दो-चार दिनों में जब मैं सब्जी खरीदने जाती हूँ, वो अपनी बीवी के साथ सब्जियाँ खरीदते हुए मिल जाते हैं। सब्जी का भरा हुआ झोला उनके कंधों पर टँगा रहता है। उनकी पत्‍नी केवल सब्जियाँ खरीदने में ही मगन रहती हैं। हमेशा से उन दोनों को यूँ साथ-साथ देखने की मेरी आदत हो गई थी। एक बार काम के सिलसिले में उनके क्लिनिक में मुलाकात हुई और जान-पहचान बढ़ गई।

इस परिचय के कुछ समय बाद एक दिन डॉक्टर साहब मंडी में अकेले ही सब्जियाँ खरीदते हुए नजर आए। उनका अभिवादन करते हुए मैंने सहज ही पूछ लिया कि आज आप अकेले कैसे? उन्होंने बताया कि उनकी पत्‍नी की तबीयत ठीक नहीं है।

वे बोले, सब्जियाँ छाँटने में मेरी मदद करो, मुझे सब्जी खरीदना नहीं आता है।

मैंने कहा, रोज सब्जी खरीदने के बाद भी आप कह रहे हैं कि आपको सब्जी खरीदना नहीं आता। 'मैं कहाँ खरीदता हूँ, वो खरीदती है।' '

पर, साथ तो आप भी रहते हैं न!

अपनी पत्नी की खुशी के लिए मैं कंधे पर झोला लटकाए आ जाता हूँ।

आपको झोला लटकाए देख वो खुश हो जाती है?

नहीं, मुझे झोला लटकाए देख वो खुश नहीं होती है। उसे सब्जियाँ खरीदने का शौक है। वो सब्जी खरीदकर खुश होती है, उसे खुश देखने के लिए मैं झोला टाँग लेता हूँ।

दरअसल, विनीता को पैरों में तकलीफ है। उसे अकेले सब्जी मंडी तक भेजने में मुझे डर लगता है। उसका एक ही शौक है। अब इस उम्र में वो कोई नया शौक तो पालने से रही। उसकी खुशी के लिए मैंने ही अपना टाइम मैनेज कर रखा है।

आपको अपनी पत्‍नी की इतनी फिक्र है। क्या आपकी लव मैरिज हुई थी?

अरे नहीं, हमारे समय में लव मैरिज नहीं होती थी।

फिर भी आप दोनों के बीच इतनी अच्छी अंडरस्‍टैंडिंग कैसे है?

किसने कहा, अच्छी अंडरस्‍टैंडिंग है। अक्सर वो मुझसे कहती है कि तुमने मेरे लिए क्या किया है? मैं धीरे से मुस्कुरा देता हूँ। उसे क्या पता, मैंने उसके लिए क्या किया है?

अब प्यार शब्द के मायने मुझे समझ आ रहे थे। जो समझ पाई, वो इतना ही कि प्यार को लिखा नहीं जा सकता, समझाया नहीं जा सकता, प्यार किया नहीं जा सकता, वह तो बस होता है या हो जाता है।

दिल जो न कह सका जरूरी है समय पर मन की बात कहना

हलो दोस्तो! पूरी दुनिया हमें यह अहसास कराती रहती है कि हम भारतीय बहुत ज्यादा बोलते हैं। मोबाइल फोन कंपनियों ने भी अपने अनेक अध्ययन में पाया कि हम भारतीयों का बक-बक करने में जवाब नहीं। जब तमाम तरह के अध्ययनों से यह तथ्य साबित किया जा रहा है तो वाकई भारतीय ज्यादा बोलते होंगे। यूँ तो पुरुष यही प्रचार करते रहते हैं कि औरतें ही बातूनी मशीन हैं पर इस सच्चाई से भी पुरुषों को एतराज नहीं होना चाहिए कि मोबाइल या अन्य प्रकार की फोन सुविधा जितनी पुरुषों को है उतनी महिलाओं को नहीं है। मतलब भारतीय पुरुषों को भी बातें करने में महारत हासिल है ।

फिर क्या कारण है कि जब महत्वपूर्ण बातें उन्हें करनी होती हैं तो नहीं कर पाते हैं, खासकर महिलाओं के साथ, महिलाओं से संबंधित। अंग्रेजी के एक निहायत बुजुर्ग (उम्र के लिहाज से) नामचीन लेखक ने एक बार अपने कॉलम में लिखा कि आज जब मैं कई महिलाओं को उन पर आए क्रश के बारे में बताता हूँ तो वे ये कहती हैं कि काश 50 या 60 वर्ष पहले कहा होता क्योंकि मेरे दिल में भी वही जज्बा था। मैं भी तुम्हें देखकर तड़प जाती थी। लेखक ने उन महिलाओं के सवाल पर लिखा कि मैं डरता था कि पता नहीं तुम्हारा क्या जवाब या प्रतिक्रिया हो। आगे लिखते हैं, अब मलाल करने के सिवाय चारा भी क्या है। सच अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।

पर आश्चर्यजनक रूप से आज भी लाखों, करोड़ों नौजवानों की श्रीमान लेखक जैसी ही दशा है। शायद वे भी 30-40 वर्ष बाद अपनी क्रश से नहीं बल्कि किसी और के सामने अपने दिल में दबी बात को जुबाँ पर लाते हुए मिल जाएँ। बड़े लेखकों की बड़ी बात होती है। उनकी मित्र मंडली अंतिम समय तक गाहे-बगाहे मिलती-जुलती रह सकती है पर बेचारे आम नौजवान की क्रश इस दुनिया की भीड़ में कहाँ गुम हो जाएगी कौन जाने।

दरअसल, भारतीय पुरुष यूँ तो अपनी बहादुरी एवं जवाँमर्दी की खूब डींगे मारते हैं। उनकी बातें सुनो तो दफ्तर व धंधे में उससे बड़ा तीसमार खाँ कोई नहीं है। कई को तो अपने ज्ञान पर इतना घमंड होता है कि औरतों का सही लिखा हुआ भी उन्हें गलत दिखाई देता है। लड़कियों के सामने जब वे थोथे आत्मविश्वास से भरकर हाँकते हैं तो ऐसा लगता है मानो भेजे से अकल उबाल मारकर बाहर निकल आएगी पर बेचारे सामने वाली को ये नहीं बता पाते कि तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो। मुझ पर रहम करो। पूरा समय या तो बेकार की बातों या जरूरत से ज्यादा काम की बातों में निकल जाता है और समय के साथ ही देखते ही देखते लड़की भी वहाँ से निकल जाती है।


NDतब बेचारे, संकोच के मारे यही सोचते रहते हैं काश कोई ऐसी मशीन होती जो दिल की बात उस तक बिना बोले पहुँचा देती। पर सदियों से चले आ रहे नाकाम सैदाइयों को कौन बताए कि न तो ऐसी मशीन बनी है और न ही आने वाले वर्षों में इसकी ईजाद की कोई आशा है। बेहतर यही है कि आप थोड़ा हौसला बढ़ाएँ और अपनी पसंद के सामने अपनी जुबान खोल दें। शायद भारतीय मर्दों के इसी दर्द को एक मुंबइया फिल्म में बयान किया गया है।

'हौसला और करो, मुँह से कहते न डरो, दिल न तोड़ेंगे अपना वादा है।' फिल्मों में तो बड़ी आसानी से हीरो-हीरोइनें अपना हाले दिल गाकर बयान कर डालते हैं पर वास्तविक जीवन में ये बेचारे नौजवान कैसे अपनी बात रखें ।

ज्यादातर पत्र इसी मसले को लेकर होते हैं कि निजीपन लिए संवाद कैसे शुरू किए जाएँ। हिंदी भाषी लड़के-लड़कियों के सामने तो ये समस्याएँ और भी गंभीर रूप लेकर खड़ी हो जाती हैं। लड़कों को लगता है कि कहीं लड़की की या उसके पोशाक की तारीफ कर दी और लड़की ने बुरा मान लिया तो उसकी शराफत पर ही सवालिया निशान लग जाएगा। दोस्ती की भी बलि चढ़ी सो अलग। लड़कों का डर भी बेजा नहीं लगता है क्योंकि अक्सर लड़कियाँ सहजता से मना करने के बजाय कुछ ज्यादा ही हल्ला-गुल्ला मचाने लगती हैं।

बातचीत बंद कर देना अपने परिवार और दोस्तों में बताना व मजाक उड़ाना सचमुच किसी भी लड़के को शर्मिंदगी में डाल सकता है। अब कोई बिल्कुल ही मजनुँओं वाली हरकतें करे तो उससे सावधान रहना या खौफ खाना तो सही है पर छोटी सी बात का बतंगड़ बना देना कि मुझे ऐसी-वैसी लड़की मत समझना, मैं बड़ी चरित्रवान हूँ, ऐसी हालत में बेचारे लड़कों की शामत ही आ जाती है।


किसी भी लड़की को करीब से जानने का एक ही तरीका है कि पहले उससे आम बातचीत करनी चाहिए। उसे जानने के लिए साधारण दोस्त बनने की जरूरत है। रोजाना के कामकाज से सबंधित संवाद बनाना चाहिए। शालीनता के साथ उसके साथ पेश आना चाहिए। यदि उसके प्रति आपके दिल में इज्जत है तो वह आपकी बातों और व्यवहार से भी झलक जाएगा जो आपकी दोस्ती को मजबूत करने में सहायक होगा।

समय के साथ-साथ यही दोस्ती प्यार के इजहार का साहस भी जरूर देगी। जल्दबाजी में केवल औपचारिक सी शादी होती है जिसमें सबकुछ बाहरी तौर पर जोड़-घटाव किया जाता है। जात-पात, खानदान, नौकरी, रंग-रूप, शिक्षा मैच कर गया शादी कर लो। प्रेम के लिए एक-दूसरे को समझने, पसंद करने की जरूरत होती है। इसलिए धैर्य रखें। लड़के-लड़कियों को समाज में अलग-अलग रखने के कारण दोनों ही एक-दूसरे को सशंकित ढंग से देखते हैं पर भरोसा रखें, दोनों मनुष्य हैं और यकीन मानें दोनों लगभग एक ही जैसा सोचते हैं।

पहली मुलाकात है जी...

हेलो दोस्तो! बहुत सारे युवक इस बात का ही रोना रोते रहते हैं कि उनकी किसी लड़की से दोस्ती नहीं होती है। कोई उपाय बताएँ कि कैसे वह लड़कियों से दोस्ती करें, कैसे उन्हें गर्लफ्रेंड बनाएँ। पर जब किसी लड़की से दोस्ती हो जाती है तब फिर यह विकट समस्या सामने आती है कि एकांत में वह उनसे कैसे और क्या संवाद बनाएँ।

युवती दोस्त के साथ कई लोगों के बीच बातचीत करना, हँसी-मजाक करना और थोड़ा रूमानियत का अहसास करना एक बात है लेकिन उसी के साथ एकांत में संवाद बनाना बिल्कुल अलग।

किसी लड़की द्वारा अपने लड़के दोस्त का यह प्रस्ताव मान लेना ही काफी नहीं है कि वह उसके साथ डेट पर जाने को तैयार है। यूँ तो किसी भी रिश्ते की यह पहली बड़ी सफलता मानी जाएगी पर इसे बहुत ही संकट का समय भी माना जाएगा। अगर युवती किन्हीं कारणों से अपने मित्र से प्रभावित नहीं हुई तो इस रिश्ते को यहीं पर पूर्ण विराम लग सकता है। पहली डेटिंग ही अंतिम डेटिंग बन सकती है।

लड़कों का डरना और दुविधा में रहना भी स्वाभाविक है। यूँ तो लड़के और लड़कियाँ मनुष्य ही हैं पर अलग माहौल में परवरिश के कारण दोनों के सोचने-समझने का तरीका भिन्न होता है। इसी वजह से दोनों ही कई बार नए माहौल में सशंकित से रहते हैं। अधिकतर मामले में पहली डेट पर पूरी जिम्मेदारी लड़कों की हो जाती है कि वह कैसे उस शाम या समय को खुशगवार बनाए रखें।

सबसे पहला संकट यह आता है कि आखिर बात कहाँ से शुरू की जाए। ऐसे वाक्य से संवाद शुरू करना चाहिए जो ज्यादा भारी-भरकम न हों और जवाब देने वाले को भी कोई जोखिम महसूस न हो। जैसे, 'आज का दिन कैसा बीता?' बहुत ही उचित प्रश्न है उस मौके के लिए। इस बात पर वह आसानी से बात शुरू कर सकती है और बहुत कुछ बताने को हो भी सकता है। माहौल सहज करने के लिए ऐसा प्रश्न करना और फिर धैर्य से पूरा जवाब सुनने के बाद थोड़ा अपना अनुभव भी बताना अनुकूल हो सकता है।

अब आप थोड़ा निजीपन की ओर बढ़ सकते हैं। संभ्रांत और सौम्य आवाज और भाषा में अपनी डेट की पोशाक के चयन की सराहना कर सकते हैं। रंगों की तारीफ करते हुए आप हौले से बता सकते हैं कि यह उस पर फब रहा है। उनके पूरे गेटअप और केश सज्जा की भी प्रशंसा कर सकते हैं।


NDहो सकता है उन्होंने ऐसी जींस और टॉप पहनी हो जो आपकी निगाह में उतना अच्छा न लग रहा हो फिर भी आपको उसकी तारीफ ही करनी चाहिए। आपकी यह प्रशंसा उन्हें आश्वस्त और सहज कर देगी। यह पूरी बातचीत इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि इस पहली डेट के लिए उसने अतिरिक्त कोशिश की है।

सजने-संवरने में समय लगाया है। वैसे तो आपने भी तैयार होने में मेहनत की है और आपको उसकी दाद भी जरूर मिलेगी। कई बार लड़कियाँ ऐसी बातों में पहल करने से कतराती हैं लेकिन सहज और सही माहौल मिलने पर बहुत ही आसानी से ऐसी बातों में हिस्सा ले सकती हैं।

खाने-पीने के बीच ही उसकी पसंद के खाने पर जानते हुए बोलना चाहिए, 'सच यह बहुत ही प्यारा समय है मेरे लिए, इतना खूबसूरत लम्हा बीतेगा, इतना अच्छा लगेगा मिलकर बैठने पर यह मैंने नहीं सोचा था।' ऐसी बातों से आपकी 'डेट' बहुत खुश होगी। और अब आप किसी अन्य विषय पर बातचीत शुरू कर सकते हैं। यहाँ लड़कों को सतर्क रहने की जरूरत है क्योंकि अमूमन लड़के, लड़कियों को कम अक्लमंद समझते हैं पर यह विचार बहुत ही खतरनाक है, इसे भाँपते ही आपकी 'डेट' आपसे दूर हो जाएगी।

कई लड़कियाँ इतनी हाजिरजवाब और जहीन होती हैं कि आपकी पुरुषवादी सोच को जानते ही आपको अलविदा कह देंगी और आपका मजाक भी उड़ाएँगी। इसलिए संवाद बनाते समय अपनी डेट को भी अपने बराबर ही समझें। विषय पर बात करते समय यदि नया नजरिया सामने आता है तो उसे सराहें और बताएँ कि यह दृष्टिकोण बिल्कुल नया है।

अगर अहं को सामने रखकर आप असहज होने लगेंगे और तारीफ करने से मैं छोटा हो जाऊँगा, ऐसा समझेंगे तो यह मान लें कि रिश्ता हाथ से गया। तारीफ में हमेशा सच्चाई झलकनी चाहिए। बनावटीपन से काम नहीं बनता। आपकी डेट को भी सच और ढोंग का अहसास हो जाएगा।

इस पूरी बातचीत का आधार यह होना चाहिए कि आप दोनों ज्यादा सहज हों, अच्छा महसूस करें, एक दूसरे के बारे में थोड़ी निजी बातें भी जान पाएँ। इसे बिलकुल परीक्षा वाला समय नहीं बना देना चाहिए। बहुत ज्यादा निजी सवाल भी नहीं करना चाहिए। अगर आपने सावधानी के साथ यह पहली डेट पार कर ली तो निश्चित ही अगली कई डेट आपकी होंगी।

अब हँस भी दो....

अगर आप भी अपनी गर्लफ्रेंड के होंठों पर मुस्कान देखना चाहते हैं तो हम बताते हैं उसके लिए कुछ टिप्स, जिससे आपकी वो खुश हो जाएँगी और उनकी खुशी से बढ़कर आपको और क्या चाहिए? तो लीजिए -

* उनका हाथ कुछ सेकंड के लिए जरूर थामें।

* प्यार से उनके सिर को चूमें।

* नींद से जगाने के लिए उनकी ही रिकॉर्ड आवाज को उन्हें सुनाएँ।

* उन्हें बराबर यह बात कहते रहें कि आप उन्हें कितना प्यार करते हैं।

* अगर वह परेशान है तो उन्हें गले लगाकर इस बात का एहसास दिलाएँ कि वह आपके लिए कितना मायने रखती है।

* उनकी छोटी-छोटी बातों का भी ख्याल रखें, क्योंकि यह प्यार का बहुत जरूरी हिस्सा होता है।

* कभी-कभी उनके पसंदीदा गाने भी उन्हें सुनाएँ, चाहे आपकी आवाज कितनी भी खराब क्यों न हो।

* उनके दोस्तों के साथ भी कुछ समय बिताएँ।

* अपने परिवार के लोगों और दोस्तों से भी उन्हें मिलाएँ, इससे आपके प्रति विश्वास बढ़ेगा।

* उनके बालों को प्यार से सहलाएँ, इससे उन्हें सुकून मिलेगा।

* कभी-कभी आप उनके साथ मस्ती भरा खेल भी खेलें, जैसे गुदगुदाना, गोद में उठाना, तकिये जैसी हल्की-फुल्की चीजों को पूरी ताकत से दे मारें।

* पार्क में लेकर घूमने जाएँ और अपने दिल की बातें कहें।

* हँसाने के एसएमएस या फिल्मी डायलॉग जो उनकी जानकारी में न हों, उन्हें सुना दें और कहें मेरी ही उपज हैं। मीठा और प्यारा सा झूठ तो चल ही जाएगा न!

* रात को कोशिश करें कि प्रत्येक घंटे में एक बार उन्हें मिस्ड कॉल दें। कितने घंटों आप उनकी याद में जागे और मिस किया उन्हें पता चलेगा।

* जब वह आप में पूरी तरह खो जाए तो उसे प्यार से चूमें।

* उन्हें कभी-कभी अपने कंधों पर उठाएँ।

* उनके लिए फूलों का तोहफा ले जाएँ।

* अपने दोस्तों के बीच भी उनके साथ वैसा ही व्यवहार करें, जैसा आप अकेले में करते हैं।

* एक और जरूरी चीज। लगभग हर चार घंटे में यानी दिनभर में 2-3 बार उनके किसी न किसी काम की तारीफ करें। ड्रेस अच्छी है या मुझे यह अदा तुम्हारी बहुत पसंद है। सराहना का हर कोई मुरीद होता है।

* कभी ख्यालों में डूबी दिखें तो ठान कर बैठ जाएँ क्या सोच रही थीं बताओ। थोड़ी ना-नुकुर के बाद वह बता भी देंगी।

* उनकी आँखों में देखकर मुस्कराएँ।

* आपकी जो तस्वीर उन्हें पसंद हो उन्हें जरूर दें।

जरूरी है एक छोटा-सा थैंक्स शुक्रिया से बढ़ता है प्यार

हेलो दोस्तो! हर किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता.. क्या यह सोचकर हमेशा उदास रहना चाहिए? नहीं। अगर हमने अधूरेपन को ही अपनी सोच का आधार बना लिया तो खुशी हमें दूर-दूर तक नजर नहीं आएगी। हम अवसाद में डूबते जाएँगे। हमारे जीने का उत्साह ही खत्म हो जाएगा। जीवन में खुशियाँ भरने के लिए प्यार से भरे हुए जो भी पल आपके हाथ लगते हैं उसका शुक्रिया अदा करना चाहिए।

अपने साथी के हर सहयोग, आपको खुश करने की हर कोशिश, अपनी व्यस्तता और मजबूरियों के बीच साथ देने और समय निकालने के हर प्रयास का तहे दिल से धन्यवाद करना चाहिए। शुक्रिया अदा करना बहुत ही प्यारा लव मंत्र है। इससे मिलने वाली खुशी हजार गुना बढ़ जाती है और प्यार पर भरोसा बढ़ता जाता है।

प्यार का एक ही धर्म है खुशी देना। इस मजहब में केवल अच्छे गुणों की ही गुंजाइश है। आप ही बताएँ यदि प्यार करने वाले आपस में ईर्ष्या करने लगें, प्रतिस्पर्धा करने लगें, एक दूसरे को नीचा दिखाने लगें, वर्ग भेद और ऊँच-नीच का अहसास कराने लगें, अहम दिखाने लगें, उम्र एवं पद का धौंस महसूस कराने लगें तो वह प्यार टिक सकता है?


NDप्यार तो दूर की चीज है, ऐसी नकारात्मक भावना से साधारण पसंद भी समाप्त हो जाएगी। नकारात्मक गुणों को आपस में पालते हुए भी यदि कोई प्रेमी युगल बने हुए हैं तो इसका मतलब है कि उन्हें बस जीवन साथ बिताने की कोई मजबूरी है। न सखा भाव है, न ही एक-दूसरे के लिए कोई हमदर्दी। क्या बिना त्याग, करूणा और हमदर्दी के कोई प्रेम मुमकिन है। इसलिए अपने साथी से प्रदर्शित किया गया मामूली सा त्याग, हल्की सी करुणा और थोड़ी सी हमदर्दी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करें। यकीन मानिए आपको लगेगा कि आपको दोनों जहाँ मिल गया है।

अपने साथी की हर अच्छी अदाओं और गुणों पर वारा जाऊँ या वारी जाऊँ वाली भावना से प्यार के रिश्ते में चार चाँद लग जाते हैं। प्यार कोई करता ही इसलिए है कि वह जीवन में जीने का अहसास लाए। जीने की भावना जगाने के लिए अच्छी सोच की जरूरत होती है। उम्मीद की जरूरत है। अपने प्यार पर भरोसे की जरूरत है। यह तभी संभव है जब हम अपने साथी की हर छोटी-बड़ी कोशिश को सराहें। उसे उसके प्रयास को इंगित करके दिखाएँ।

अपने प्यार के साथ शुरू की गई यह आदत और व्यवहार धीरे-धीरे तमाम परिस्थितियों से निपटने का हौसला देगा। एक बार हालात को, व्यक्तियों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने और तोलने की आदत जीवन में कामयाबी की ओर ले जाएगा।

आप ही बताएँ अपने बॉस, शिक्षक, माँ-बाप, भाई-बहन, अन्य रिश्तेदार या दोस्त-अहबाब को आप उनके किसी सहयोग पर धन्यवाद व्यक्त करते हैं, उनका चेहरा कितना खिल उठता है। सख्त से सख्त व्यक्ति भी कोमलता से भर उठता है। इतना ही नहीं इसका असर और भी गहरा होता है। वह असर आगे फिर आपके लिए उससे भी बेहतर कुछ करने का मौका देगा।


NDशुक्रिया, केवल औपचारिकता के लिए नहीं करना चाहिए। उसे दिल से महसूस करके करें तो उसकी ताकत आपको भी महसूस होगी। आपको शारीरिक तौर पर भी इसका लाभ मिलेगा। सकारात्मक सोच आते ही हमारे सारे ग्लैंड सही काम करने लगते हैं। यह आपके अंदर आत्मविश्वास भी जगाता है। यदि एक मरीज को अपने डॉक्टर पर ही भरोसा न हो तो उस डॉक्टर का काम ज्यादा मुश्किल हो जाता है।

पर अगर डॉक्टर के प्रयास से आपको थोड़ी भी राहत मिली हो और आप उसको, उस प्रयास का धन्यवाद करते हैं तो डॉक्टर भी अपनी पूरी विधा और तजुर्बे को अपने दिमाग में समेटकर आपका इलाज करने की कोशिश करेगा। यदि आपने यह भावना दिखाई कि बस दस प्रतिशत तो ठीक हुआ है...आप क्या इलाज कर रहे हैं... तो वह आपका इलाज तो करेगा पर उसका व्यक्तिगत प्रयास लुप्त हो जाएगा।

उसी प्रकार प्यार करने वाले को भी उसके प्रयास की विशेष पहचान की जरूरत पड़ती है। जिसने आपके लिए कुछ भी किया है उसका एक ही तरीका है बताने का और वह है, शुक्रिया अदा करना। मजे की बात यह है कि औपचारिक रूप से बोला गया यह शब्द भी बेअसर नहीं जाता है। दिल से धन्यवाद करें तो दुनिया आपकी है।

हाँ, तुम बिल्कुल वैसी हो...!

क्या आप जानती हैं- पुरुष जब प्रेम करते हैं तो वे स्त्री से क्या चाहते हैं? बहुत सारे लोग शायद उसकी चाहत का अर्थ शारीरिक संबंधों से आगे न लगा पाएँ। यह सही है कि बहुत से पुरुष संबंधों के मामले में संकोची होते हैं और वे चाहते हैं कि जो कुछ हो वह स्त्री की तरफ से ही किया जाए। यह सिर्फ इसलिए होता है कि इससे पुरुष को स्त्री के साथ अपने संबंध मजबूत और ईमानदार बनाने में मदद मिलती है। जो बातें वह स्त्री से कर सकता है वह किसी और से शायद नहीं कर सकता।

खासतौर से जब पुरुष किसी स्त्री से प्यार करता है या शुरुआत करता है तो वह चाहता है कि स्त्री बिना कुछ कहे ही उसकी इमोशन्स और थॉट्‍स को जान और समझ ले ताकि पुरुष भविष्य में उससे अपने मन की अनकही बातें भी कह सके। आखिर प्रेम में पड़े पुरुष क्या सोचते हैं और वे क्या बन जाते हैं?

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इसे समझना एक टेढ़ी खीर है पर कोशिश की जाए तो कुछ हद तक प्रेम के प्रति पुरुषों का नजरिया समझा जा सकता है।

वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक गीतिका कपूर कहती हैं- जब कोई व्यक्ति प्रेम में पड़ता है तो संबंधों को लेकर उसमें एक अलग तरह का कॉन्फिडेंस आ जाता है। वह खुद को दूसरों से प्रेम करने वाला और संयमी महसूस करने लगता है। तब दरअसल पुरुष जिस स्त्री से विवाह करता है वह उससे कई मुलाकातों, डेटिंग और दूसरों से सर्वश्रेष्ठ मानने के बाद ही जुड़ता है। इस तरह की फीलिंग्स उसे जीवन के प्रति एटिट्‍यूड को बदलने और विभिन्न आयामों को समझने में भी मददगार साबित होती हैं। इसलिए वह अपने आपको इस तरह तैयार करता है कि दूसरे भी उससे इन्सपायर हों।

छः माह पहले ही लव मैरिज करने वाले विनीत चोपड़ा कहते हैं- यह प्रेम का पॉजीटिव साइड है जो पुरुष दूसरों को बता सकता है। कुछ लोगों के लिए प्रेम जीवन में अहंकार को बढ़ाने वाला भी साबित होता है। वरिष्ठ मनोचिकित्सक संदीप वोरा मानते हैं कि यह रवैया दरअसल पुरुष में स्वयं को बेहतर मानने के कारण पैदा होता है।


PRबहुत से लोग संबंधों को सिर्फ मौजमस्ती और समय काटने का रास्ता मानते हैं लेकिन कई पुरुष इन्हीं संबंधों के जरिए अपने जीवन में खुशी और उल्लास भी समेट लेते हैं। उनके लिए अपनी पत्नी या महिला मित्र की मुस्कान या आवाज ही उनके लिए सम्मान और पुरस्कार की तरह होती है। एक कंपनी में व्यवसाय प्रतिनिधि के रूप में काम करने वाली शाहना कहती हैं- 'इसलिए मैं हमेशा अपने पुरुष मित्र के साथ मुस्कराकर मिलती हूँ। वे मानती हैं कि इससे जीवन में फ्रेशनेस बनी रहती है। वह रोज खुद में एक नयापन ढूँढता है।'

एक युवा प्रेमी विकास चतुर्वेदी कहते हैं- दुनिया में मेरे लिए 'उसका' स्माइली फेस ही सब कुछ है। मैं जानता हूँ कि वह मुझे बहुत चाहती है इसलिए मैं उसे खुश रखने के लिए कुछ भी कर सकता हूँ। जब वह मुझसे अपनी कोई प्रॉब्लम शेयर करती है तो वह मेरे लिए अद्भुत पल होता है।'

गीतिका कहती हैं- करियर संबंधी मामलों में भी पुरुष चाहते हैं कि कोई योग्य महिला उनकी सहयोगी बने। उनमें अपनी योग्यता को उनसे बाँटने की चाह होती है। ऐसा होने पर पुरुष खुद को लकी फील करते हैं। लेकिन आमतौर पर महिलाएँ इस नजरिए को जानते हुए भी अनजान बनी रहती हैं जिससे पुरुष अक्सर खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं।

खासतौर से यौन संबंधों में भी महिलाएँ अपनी इच्छाओं का खुलासा नहीं करतीं जबकि पुरुष चाहते हैं कि स्त्री उनके साथ भी उसी तरह से रिएक्ट करें। सेक्स, संबंधों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संदीप वोरा कहते हैं- इससे संबंध मजबूत और नए बने रहते हैं, लेकिन कुछ पुरुषों के लिए सिर्फ यही प्रेम का अर्थ होता है। हालाँकि शारीरिक संबंधों के बगैर भी प्रेम का अर्थ अधूरा ही होता है।


NDगौर से देखा जाए तो पुरुषों में तीव्र इच्छा रहती है कि वे जो कुछ अपने जीवन में या दिनभर में करते हैं उसे उनकी सहयोगी मित्र, गर्लफ्रेंड या पत्नी देखे और सराहे। यही नहीं बल्कि उन्हें सहयोग भी करे।

गीतिका कहती हैं कि इससे पुरुष को करेज मिलता है। वह ढंग से विकसित होता है। यह जीवन को संतुलित और मजबूत बनाता है। लेकिन जहाँ पुरुष अकेले होते हैं वहाँ संबंधों में ही नहीं उनके करियर में भी असंतुलन आ जाता है। इसलिए बहुत से पुरुष कभी-कभी बहुत ही कॉम्पीटिटिव पाए जाते हैं।

संदीप वोरा कहते हैं- इसलिए पुरुष हमेशा किसी ऐसे साथी की तलाश में रहते हैं जो उन्हें मानसिक और संवेदनात्मक सुरक्षा के साथ-साथ भावनात्मक सुरक्षा भी दे सके। समझदार महिलाओं को इसमें पुरुषों की मदद करनी चाहिए।

'तू-तू-मैं-मैं' में प्यार का तड़का

अक्सर ऐसा होता है कि आप अपने साथी से किसी भी बात पर गुस्सा हो जाते हैं। कभी वह टाइम पर नहीं आ सके, या आपके विचार मेल नहीं खाए आदि कई कारण हैं जिन पर आपका क्रोधित होना स्वाभाविक है। आप अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं रख पाते।

यदि वह हमसे नाराज हैं तो इसको छिपाने की आवश्यकता नहीं। यदि वह हम पर अपना रोष प्रकट कर रहे हैं, तो इसका अर्थ यह नहीं कि वे हमसे नफरत करते हैं। सच तो यह है कि क्रोध भी प्रेम की अभिव्यक्ति का एक प्रकार है।

क्रोध या गुस्सा सामान्यत: एक अवगुण है जो थोड़ा बहुत सब में होता है। फर्क सिर्फ इतना है कि कोई आवश्यकता से अधिक गुस्सा करता है तो कोई कम। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें गुस्सा जरूर आता है, लेकिन वे उसे व्यक्त नहीं करते। ऐसा कभी आदतवश होता है और कभी विवशता के कारण।

पर यह सत्य है कि हम सभी को कभी न कभी किसी न किसी बात पर गुस्सा आता ही है, क्योंकि अन्य अनुभूतियों की तरह यह भी एक अनुभू‍ति है। अक्सर लोग जब अपना क्रोध उस आदमी पर व्यक्त नहीं कर पाते, जिस पर वे करना चाहते हैं तब वे अपना गुस्सा दूसरी चीजों पर निकालते हैं।

मनोवैज्ञानिकों का कहना है‍‍ कि क्रोध के आवेग में किसी चीज को उठाकर फेंकने से या मारने से मनुष्य के अंदर की भड़ास निकल जाती है तथा उसके जल्दी शांत हो जाने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।

इसके विपरीत कुछ लोगों को गुस्सा करने की आदत पड़ जाती है जिससे वे अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं। गुस्सा दबाना या उसे अभिव्यक्त न करना शुरू में किसी विवशता के कारण होता है, जो क्रमश: आदत का रूप ले लेता है। सच तो यह है कि क्रोध की आग बुझती नहीं ‍वरन अंदर ही अंदर सुलगती रहती है।

इस कारण अक्सर लोग खासकर युवा भयंकर निराशा का शिकार हो जाते हैं और नशीली चीजों के सेवन की ओर अग्रसर हो जाते हैं। गुस्सा दबाने का असर हमारे मस्तिष्क पर भी पड़ता है।

गुस्सा व्यक्त करते समय ध्यान दें कि आपकी आवाज‍ किस प्रकार बदल रही है। सामने बैठे व्यक्ति से यह न कहें, 'तुमने मेरे साथ ऐसा किया' क्योंकि ऐसा कहने से आप उसे अपने गुस्से के विषय में बता रहे हैं, न कि अपना गुस्सा प्रकट कर रहे हैं। इसके बजाय कहें 'मैं तुमसे नाराज हूँ' या 'मैं तुमसे नफरत करती हूँ 'या मुझे तुम्हारे पर इतना ज्यादा गुस्सा आता है क्योंकि तुमने मेरे साथ ऐसा-वैसा किया।'

नकारात्मक भावनाओं को जिस प्रकार अ‍नुभव किया जाता है, यदि उसी रूप में अभिव्यक्त ना किया जाए तो इसके हानिकारक परिणामों से बचा जा सकता है।


ND* आप यह जरूर ध्यान रखें कि जिस बात से आप दोनों के बीच असहमति बनी है बात उसी तक सीमित रहे। वहाँ से इसे डाइवर्ट कर कहीं ओर खींच कर न ले जाएँ नहीं तो समस्या कम होने की बजाय और बढ़ सकती है।

* अपने मनोभावों पर नियंत्रण रखें। अपने शब्द मर्यादा की सीमा में रखें और आपका उद्देश्य मतभेदों को दूर करना होना चाहिए।

* यदि आपके विचार से आपका साथी सहमत नहीं है तो फिर जबर्दस्ती उस पर अपने विचारों को थोपें नहीं। थोड़ा उस घड़ी को टालने का प्रयास करें। दिमाग शांत होगा तो ऑटोमैटिक ही कई इशूज रिजॉल्व हो जाएँगे।

* जहाँ तक संभव हो आप दोनों के अलावा तीसरे को बीच में न आने दें, लेकिन आवश्यक हो जाए तो विश्वसनीय दोस्त को मिडिएटर बनाने से भी परहेज न करें।

* बात को गाँठ न बाँध लें। जितनी जल्दी हो सके। आगे बढ़कर बात कर लें। जैसे खाना खाया‍ कि नहीं या उनके ही किसी अन्य मित्र के बारे में पूछ लें। आपके फोन में भले ही बैलेंस हो लेकिन साथी का मोबाइल माँगकर यूज कर लें।

* सामने वाला जो काम कर रहा है। उसकी आगे बढ़कर हेल्प करने चले जाएँ।

दोस्तो, याद रखिए यही वह नाजुक समय होता है जबकि आप तलवार की धार पर खड़े होते हैं जिसके एक ओर कुआँ होता है और दूसरी ओर खाई। आपमें से किसी की भी गलती आगे के रिश्ते पर हो सकता है ब्रेक लगा दे।
क्योंकि बड़े-बड़े झगड़ों की शुरुआत ऐसे ही किसी छोटे बिंदुओं से होती है।

किसी ने ठीक ही कहा है कि यदि आपको आदमी का व्यवहार परखना हो तो आप देखिए कि उसके झगड़ा करने का ढंग क्या है। उस समय वह कितना शालीन बना रह सकता है या कितना अभद्र हो सकता है।

झगड़े में भी प्यार बना रहे तो इससे अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता। गुस्सा करो तो भी ऐसे कि आपके अन्य दोस्त भी आपकी मिसाल दें कि देखो लड़ने-झगड़ने के बावजूद भी कब पहले जैसे हो जाते हैं पता ही नहीं चलता।

ऐसे जमाएँ इम्प्रेशन गर्लफ्रैंड पर

किसी भी युवती या महिला के सम्मुख अपनी छाप छोड़ने में कुछ पुरुष अनजाने में असफल हो जाते हैं। असल में अधिकांश महिलाएँ पुरुषों से मित्रता के मामले में एक मर्यादित, सभ्य तथा संतुलित व्यवहार चाहती हैं। यदि आपको ऐसा लगता है कि आप महिलाओं पर प्रभाव डालने में असफल साबित होते हैं तो आपको जरूरत होती है ऐसी ही कुछ बातों को अपनाने की।

क्या ऐसा होता है कि जब भी आप किसी युवती की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाते हैं, वो पीछे हट जाती है। चेहरे-मोहरे से आप खासे अच्छे हैं। बढ़िया नौकरी से लगे हुए हैं। सबके साथ व्यवहार में भी मीठे हैं। फिर भी युवतियाँ हमेशा आपकी ओर से मुँह क्यों फेर लेती हैं?

न केवल आज, बल्कि कॉलेज के दिनों से ही ऐसा होता आया है। नहीं, यह भाग्य का खेल नहीं है। यह तो यथासंभव आपका अपना ही खेल है, जिसे स्वयं आपने बिगाड़ रखा है!

कहीं ऐसा तो नहीं कि...

* आप की साँसों में गंध है। खुद आपको इसका पता नहीं है। हो भी नहीं सकता। फौरन अपने डॉक्टर से मिलिए। असलियत वो ही बता सकेगा। छुटकारे के उपाय भी वो ही सुझाएगा। किसी भी उपाय की उपेक्षा मत करिए। रात को सोने से पहले ब्रश अवश्य कीजिए।

* गंध आपके वस्त्रों से भी आ सकती है। भीतर पहने जाते हर वस्त्र को रोज बदलिए। इसमें आपके मोजे भी शामिल हैं। पसीना अगर ज्यादा आया हो या आता रहता हो तो भीतरी वस्त्र बदलने के लिए अगली सुबह का इंतजार मत करिए। उन्हें रोज दो बार बदलकर स्वयं को सुरक्षित कर लीजिए। बाहरी वस्त्र भी आपको रोज बदलने चाहिए। बाहरी वस्त्रों में कहीं दाग या छिद्र न हो। इस्त्री ठीक से की गई हो। जूतों पर पॉलिश भी इतनी ही जरूरी है।

* गंध आपके बदन से भी आ सकती है। रोज किसी अच्छे साबुन से सर से पाँव तक नहाइए। नहाने के नाम पर केवल भीगकर बाहर न निकल आएँ। बदन के किसी भी जोड़ पर केश न रहने दें। केश में गंध फँसी रहती है। हर जोड़ पर अतिरिक्त साबुन लगाएँ।

* हाथ के ही नहीं, पैर के भी नाखून कभी न बढ़ने दें, उनमें मैल भी जमा न होने दें।

अब व्यावहारिक सावधानियाँ

* कहीं भी पान की पीक मारना, थूक देना, जम्हाई के समय मुँह पर हाथ न रखना, बार-बार गला साफ करते रहना, जाने-अनजाने कहीं भी खुजा देना, खाते वक्त बड़े-बड़े कौर भरना, ऐसी फूहड़ताओं से युवतियाँ चिढ़ जाती हैं।

* बातचीत के दौरान युवती की महत्वाकांक्षाओं, आदतों, शौक आदि की चर्चा करें। स्वयं के बारे में तभी कुछ बताएँ, जब पूछा जाए। हर दम अपनी ही बढ़ाई करने में डूबे युवक का इम्प्रेशन बिगड़ते देर नहीं लगती। भले ही वो जरा भी असत्य न बोल रहा हो!

* युवती जब कुछ बोल या बता रही हो, तब इधर-उधर देखते रहना, यूँ ही हाँ-हूँ करना, किसी आते-जाते पर कमेंट पास करना... इनसे बचें। युवती की नजर से नजर मिलाकर ही सब सुनें। लेकिन घूरें नहीं। जो सुनें, याद भी रखें ताकि अगली मुलाकात में उल्लेख कर सकें।

* अचानक गला फाड़कर हँसना, ताली बजा बैठना, धौल-धप्पा करना, भद्दे चुटकुले सुनाना, दूसरों को डरपोक और स्वयं को बहादुर साबित करना, समूची औरत जात को लेकर ताना कसना, किन्हीं दो स्त्रियों की तुलना करने लगना, स्त्रियों को दोयम दर्जे का नागरिक समझना...किसी भी सूरत में इन कमजोरियों को अपने नजदीक न फटकने दें।

* युवती के साथ घूमने निकले हों, तब उससे आगे-आगे कभी न चलें।

* युवती को छूने से यथासंभव बचें। गपशप के दौरान अगर वो आपके हाथ पर कहीं छूती है तो अब वो केवल परिचिता नहीं रही, बल्कि दोस्त बन चुकी है। अगर घुटने पर कहीं छुए तो अब वो आपकी केवल दोस्त नहीं बल्कि गहरी दोस्त है। उसे न केवल स्नेह, बल्कि इज्जत के साथ सँजोकर रखें। उसके साथ अपनी आत्मीयता को किसी खजाने से कम न समझें। दूसरों के सामने इस आत्मीयता की चर्चा कदापि न करें, छेड़ा अथवा पूछा जाए, तब भी नहीं।

Wednesday, May 5, 2010

तुमसे एक गुजारिश है कि

मौत
तू जाना अपनी जगह
पर,
तुमसे एक गुजारिश है कि
जाने से पहले
मुझे फिर से एक जिंदगी दे जाना
कि जी सकूं तेरे दुश्मन-संघर्षों के साथ
कि जी सकूं वक्त के थपेड़ों, दम घुटती सांसों के साथ
और
बनाउं एक ऐसा जीवन
जहां आने से पहले तेरी रूह कांपें
मुझे ले जाने से पहले
तेरी आंखें गीली हों
और
संघर्ष के जीवन को सलाम करने के लिए
स्वतः उठे तेरे हाथ

पागल

लड़का बी ए करने के बाद कंप्यूटर सीखकर एक कंपनी में साल भर से नौकरी कर रहा है। चार हजार रुपये प्रत्येक महीने तनख्वाह मिलती है. पिता रेलवे में नौकरी करते हैं. खाता-पीता संपन्न घर है. परिवार में मात्र चार जन हैं. माता-पिता और भाई-बहन।

यह सब जानकर ही रामलाल जी अपनी लड़की की शादी की बात करने गए थे लड़के के घर। नाश्ता करने के बाद दहेज़ की बात पर आ गए. लड़के के पिता बोले, 'दहेज़ क्या लेना-देना। भगवान की कृपा से जितना है, बहुत है। और दहेज़ लेकर ही क्या करूँगा. सिर्फ़ दुल्हन चाहिए. दुल्हन ही तो दहेज़ है।'

सुनकर माथा ठनक गया रामलाल जी का. चुप से बाहर निकल गए. घर वापस आकर परिवार वालों से कहा, 'वहां शादी नहीं होगी. पागल है स्साला. दहेज़ लेना ही नहीं चाहता है.'