Thursday, December 17, 2009

दोस्त की कामयाबी

किसी दोस्त की कामयाबी को देख के खुशी होती है या जलन? कुछ कुछ दोनो होता है, पर दोस्त जब बहुत ज्यादा कामयाब हो जाता है तो दूरियाँ बढ़ने लगती हैं। कुछ उसी तरह की चीज़ है कि जो चीज हम हासिल नहीं कर सकते हैं उसके बारे में मन बनाना पड़ता है कि हमें तो उसकी जरूरत ही नहीं है। अक्सर होड़ करने के बजाय इंसान ऐसी हालत में हथियार ही डाल के विमुख होने का नाटक करता है और अंततः विमुख हो जाता है।
कभी कभी आप वही होते हैं, पर दोस्त बदल जाते हैं या उनका नजरिया बदल जाता है।

Wednesday, December 16, 2009

पहले वाली बात

कुछ दोस्तों से बात हो रही थी - प्यार व्यार के बारे में। प्यार हो तो जाता है, फिर शादी भी हो जाती है, पर उसके बाद क्या होता है? मुझे याद है कि पहले मैं किस तरह रोज दोपहर तीन बजने का इंतजार करता था - या पाँच बजने का - अफसोस कि मुझे अब वह समय भी याद नहीं है। और जब फोन नहीं मिलता था था पसीने छूट जाते थे। होंठ सूख जाते थे, लगता था किसी बात का उसे बुरा न लग जाए। दिल धड़कता था, यह सोच के कि आज क्या बात होगी। पहले दिन रात एक दूसरे के बारे में ही सोचते रहते थे, लेकिन अब नहीं। क्या है यह और क्यों होता है यह, किसे पता। क्या उस उन्माद भरे प्यार को जिन्दगी भर जिन्दा रखा जा सकता है? शायद नहीं, लेकिन यह बदलाव कैसे आया। देखो जो बोओगे वही तो काटोगे न। कुल चौबीस घंटों में आराम से बारह घंटे का समय रिश्ते को बढ़ाने और आगे चलने में जाता था। अब उस पर कितना समय जाता है। अब तो पता है कि वह बगल में ही है, और नाक में दम भी कर रही है। क्या उतना समय मैं देता हूँ जितना पहले देता था, क्या उतने ही इरादे बनाता हूँ मैं उसे खुश करने के, क्या काम जल्दी खत्म कर के वापस आने के ख्वाब देखता हूँ, या फिर बस दुनिया के सामने अच्छा परिवार और अच्छे शौहर का नाटक करने लायक चीजें इकट्ठी भर करता हूँ? क्या मैं अब अपने आपको तैयार करता हूँ इस बात के लिए कि आज जया को मुझमें क्या नया दिखेगा, आज जया में मुझे नया क्या दिखेगा, वह तो बस मेरे बच्चों की माँ भर है, और दुनिया को दिखाने के लिए, साथ तस्वीर खींचने के लिए है। लेकिन एक वक्त था जब ऐसा नहीं था। मेरे से ज्यादा सफल वह खुद थी, मेरे से ज्यादा ख्वाब अपने घर के बारे में उसने खुद देखे, और मेरी सफलता का एक बहुत बड़ा राज वह खुद है। तो यह सब प्यार व्यार, क्या बस ढोंग है, नाटक है, प्रपंच है, जो बस खत्म हो जाएगा, बस खुदा का बच्चे पैदा करवाने के लिए एक चाल है, इसमें दोस्ती, प्यार, रिश्ते विश्ते की कोई अहमियत नहीं है?

Sunday, December 13, 2009

insaaan ki chahat

इंसान क्या चाहता है और उसे पाने के लिए जो करना है उसके लिए कितनी हिम्मत रखता है उसी से फैसला होता है कि उसे जो चाहिए वह मिलेगा या नहीं। कितनी बार मन करता है कि बस अब घर पर रहें, काम पर न जाएँ, लेकिन मजबूर हो कर जाना ही पड़ता है। सोचना पड़ता है कि क्या यही चाहते थे हम, या कुछ और? पैसा, शोहरत, या चैन की साँस? उन दिनों तो लगता ही नहीं कि पैसा और शोहरत पाने के लिए चैन की साँस खोनी पड़ेगी। लेकिन खोनी पड़ती है और उसके बाद भी चढ़ाई बस चढ़ते जाओ, चढ़ते जाओ, कभी खतम नहीं होती। कहीं रुक गए तो डर लगता है कि दूसरे आगे निकल जाएँगे। जीत तो सकते ही नहीं।

चाहत खत्म क्यों नहीं होती? साइकिल मिल गई तो कार चाहिए, एक कार मिल गई तो दो, कभी भी खत्म नहीं होती।