बड़े बुजुर्ग सच कह गये कि
किसी का भला कर
फिर किसी को सुनाना नहीं।
भलाई का व्यापार
शायद पहले भी इसी तरह
चलता रहा होगा,
करते होंगे कम
लोग सुनाते होंगे अपने किस्से ज्यादा,
बिकता होगा पहले भी
बाज़ार में इसी तरह भलाई का वादा,
कौन मानेगा कि
बिना मतलब किसी का काम किया होगा,
पर इंसान तो गल्तियों का पुतला है
कभी कभी हो जाये भला काम
फिर उसे कभी अकेले में भी गुनगनाना नहीं,
लिख देना समय के हिसाब में
मिला इनाम तो ठीक
पर अपना खुद भुनाना नहीं।
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