Wednesday, December 16, 2009

पहले वाली बात

कुछ दोस्तों से बात हो रही थी - प्यार व्यार के बारे में। प्यार हो तो जाता है, फिर शादी भी हो जाती है, पर उसके बाद क्या होता है? मुझे याद है कि पहले मैं किस तरह रोज दोपहर तीन बजने का इंतजार करता था - या पाँच बजने का - अफसोस कि मुझे अब वह समय भी याद नहीं है। और जब फोन नहीं मिलता था था पसीने छूट जाते थे। होंठ सूख जाते थे, लगता था किसी बात का उसे बुरा न लग जाए। दिल धड़कता था, यह सोच के कि आज क्या बात होगी। पहले दिन रात एक दूसरे के बारे में ही सोचते रहते थे, लेकिन अब नहीं। क्या है यह और क्यों होता है यह, किसे पता। क्या उस उन्माद भरे प्यार को जिन्दगी भर जिन्दा रखा जा सकता है? शायद नहीं, लेकिन यह बदलाव कैसे आया। देखो जो बोओगे वही तो काटोगे न। कुल चौबीस घंटों में आराम से बारह घंटे का समय रिश्ते को बढ़ाने और आगे चलने में जाता था। अब उस पर कितना समय जाता है। अब तो पता है कि वह बगल में ही है, और नाक में दम भी कर रही है। क्या उतना समय मैं देता हूँ जितना पहले देता था, क्या उतने ही इरादे बनाता हूँ मैं उसे खुश करने के, क्या काम जल्दी खत्म कर के वापस आने के ख्वाब देखता हूँ, या फिर बस दुनिया के सामने अच्छा परिवार और अच्छे शौहर का नाटक करने लायक चीजें इकट्ठी भर करता हूँ? क्या मैं अब अपने आपको तैयार करता हूँ इस बात के लिए कि आज जया को मुझमें क्या नया दिखेगा, आज जया में मुझे नया क्या दिखेगा, वह तो बस मेरे बच्चों की माँ भर है, और दुनिया को दिखाने के लिए, साथ तस्वीर खींचने के लिए है। लेकिन एक वक्त था जब ऐसा नहीं था। मेरे से ज्यादा सफल वह खुद थी, मेरे से ज्यादा ख्वाब अपने घर के बारे में उसने खुद देखे, और मेरी सफलता का एक बहुत बड़ा राज वह खुद है। तो यह सब प्यार व्यार, क्या बस ढोंग है, नाटक है, प्रपंच है, जो बस खत्म हो जाएगा, बस खुदा का बच्चे पैदा करवाने के लिए एक चाल है, इसमें दोस्ती, प्यार, रिश्ते विश्ते की कोई अहमियत नहीं है?

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