पिछले कुछ दिनों में पढने वाले किशोरों .किशोरियों और कुछ बच्चो ने स्कूली परीक्षा के भय से अपने आप को समाप्त कर लिया था तब कुछ विचार मन में आये थे उन्हें ह समेटा है |
पिछली शाम
बहुरूपिया बीत गई
छोटे छोटे तिनको को
समेटकर
छोटी सी चिडिया
फुर्र्र से उड गई
बडे से कचरे के डिब्बे में अपने
नन्हे नन्हे हाथों से
रोटी कि जुगत में
पेन्सिल कबसे छूट गई
श्मशान के आलोक में
नोनिहालों कि आहुति से
सूर्य कि
रश्मिया भी सिसकने लगी
कैसी रोटी ?
कैसी शिक्षा ?
अब तो पेट कि
भूख से
शिक्षा कि
अभिलाषा से
मौत ही आगे निकल गई|
महानो कि बस्ती में
सरकारो कि मौका परस्ती में
विद्वानो कि जबरदस्ती में
अभिभावको कि उपस्थिती में
उनसे ये चूक हो ही गई ..........
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